Rabindranath poetry
Rabindranath poetry

Rabindranath Tagore Poem in Hindi

मन जहां डर से परे है -

मन जहां डर से परे है

और सिर जहां ऊंचा है;

ज्ञान जहां मुक्‍त है;

और जहां दुनिया को

संकीर्ण घरेलू दीवारों से

छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;

जहां शब्‍द सच की गहराइयों से निकलते हैं;

जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें

त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;

जहां कारण की स्‍पष्‍ट धारा है

जो सुनसान रेतीले मृत आदत के

वीराने में अपना रास्‍ता खो नहीं चुकी है;

जहां मन हमेशा व्‍यापक होते विचार और सक्रियता में

तुम्‍हारे जरिए आगे चलता है

और आजादी के स्‍वर्ग में पहुंच जाता है

ओपिता

मेरे देश को जागृत बनाओ

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